मुझमे समाने से पहले
एक बार मेरे गुनाहों को देख लेना
क्योंकि मुझमे मेरी ऊम्र से
ज्यादा मेरे गुनाह मिलेंगें।।
मुझको चाहने से पहले
एक बार सोच लेना
क्योंकि तुझे मुझसे ज्यादा
चाहने वाले बेपनाह मिलेंगें।।
मैं तो हूँ एक पत्थर का टुकडा
जो बन नही सकता घर कभी
मगर ‘श्रवण’ तुझे ताजमहल
बनाने वाले लाखों शाहजहां मिलेंगें।।
सुरजीत श्रवण
फतेहाबाद
Waah ji kya khoob likha h aap ne bahut achha h ese hi likhte raho…..