होकर फ़ना,कर्ज मातृभूमि का वो अदा कर गए
चूमकर ख़ुशी-ख़ुशी जो फांसी के फंदे झूल गए
कितना रोते होंगे, राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह
देखकर की हम किन खुदगर्जों के लिए मर गए !!
क्या-क्या सपने देखे थे, माँ की तकदीर बदल देंगे
दुनिया से निराले भारत की हम तस्वीर बदल देंगे
सींच रहे है लहू से अपने नवयुग की इस धरती को
देख खुशहाली के सपने जो प्राण न्योछावर कर गए !!
रोती होंगी उनकी आत्मा देखकर देश के हालात
क्या बना दिया बेईमानो ने भारत माँ का हाल
सूरत से तो लगते है सब भोले – भाले से इंसान
पर इंसानियत के सब जज्बात इनके मर गए !!
करके अपनों का खून, दिलो से कसाई बन गए
भूल गए वीरो की कुर्बानी,दौलत के भूखे हो गए
प्रेम,प्यार,रिश्ते नाते दुनिया में सब झूठे हो गए
भूलकर लोकलाज सब,जाने क्यों बेगैरत बन गए !!
चप्पा चप्पा हुआ दागदार, बच्चा बच्चा रोता है
लूट रहा है ये चमन रखवाला जाने कहाँ सोता है
बापू टैगोर की इस भूमि को लहूलुहान कर दिया
लुटती अस्मित नारी की ऐसे गली कूचे बन गए !!
सत्ताधारी बने स्वार्थी, माता की आन दावं लगाते
धर्म जात की आग लगाकर, गरीबो के घर जलाते
धनि सबके मालिक है,निर्धन आज करे भी चाकरी
बैठे रोए स्वर्ग में वीर, हम किनके हवाले माँ कर गए !!
मरते दम तक लड़ते रहे वो देश को आज़ादी कराने
व्यर्थ हुआ बलिदान क्यों जो माटी पर शीश कटा गए
अब फिर से लेना होगा जन्म उन वीर अभिमानो को
जो हमारी खातिर अपने देश की आन पर मर गए !!
होकर फ़ना,कर्ज मातृभूमि का वो अदा कर गए
चूमकर ख़ुशी-ख़ुशी जो फांसी के फंदे झूल गए
कितना रोते होंगे, राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह
देखकर की हम किन खुदगर्जों के लिए मर गए !!
डी. के. निवातियाँ[email protected]@@
बहुत भावपूर्ण रचना है.बधाई
उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
ह्रदय से आभार !!
बहूत अच्छा सर, आखिर कोई तो है जो धर्म जाति के परे देश के बारेमें भी सोच सकता है
बहुत बडिया डी के साहेब !!
बहुत बढीया डी के साहेब !!