गालियों के कलाम सब
चाबुकों के सलाम देते हैं
सरे बाजार घर फूंकनेवाले
दान मे कायनात देते हैं.
अपनी औकात न भूल जायें
जुर्म की तीखी लगाम देते हैं.
बस्ती में अमन कायम रहे
कातिलों को इनाम देते है.
इतने मेहरबान आका हमारे
पांव काट पायदान देते हैं.
दास उनके लिये सब बराबर हैं
हर किसी को निशाअन देते हैं.
शिवचरण दास