प्रश्न सारे आजकल गुम्बद के खम्बे हो गये हैं
चादरे सिकुडी हैं सारी पैर लम्बे हो गये हैं.
यों विरासत में मिली त्रासदी की आग यह
हंस उजले थे वो सारे काले कव्वे हो गये हैं.
प्रेम आदर धर्म रिश्ते अर्थ से सम्बद्ध हैं
अर्थहीनों के अहम हानि के बट्टे हो गये हैं.
आकाश को छूता था जिनका हौंसला हर वक्त
एक आन्धी क्या चली पतझड के पत्ते हो गये हैं.
कामना जिनके लिये तन मन किया है आचमन
देव वो मन्दिर में उभरे सिर्फ नक्शे हो गये हैं.
अब भला इस देश का कानून किसको याद है
गद्दियां मिलते ही सब चौबे के छ्ब्बे हो गयें हैं.
दास अपनी आस्था भी नीलाम खुद ही हो गई
सब शराफत के मसीहा चढ के अट्टे सो गये हैं.
शिवचरण दास