जो हमारी पीर से अनजान है
उसकी मुठ्ठी में हमारी जान है.
आंख में आंसू हमारे पावं में छाले
हर कदम पर एक नया शैतान है.
वो भला देगा किसी को क्या पनाह
भीख पर खुद पल रहा सुल्तान है.
दूध पर हरगिज उसे मत पालिये
सिर्फ डसने का जिसे वरदान है.
जिन्दगी माना बहुत मुश्किल है दास
मौत भी लेकिन कहां आसान है.
मेरे घर के सामने है अस्पताल
और पिछ्वाडे निरा शमशान है.
शिवचरण दास