“तेरा ही हूँ”
कुछ ख़ास है कुछ विश्वास है |
तेरा मेरा नाता ऐसा , प्रेम के घरोंदे जैसा वास है ||
जीवन को जीवन , मकां को घर बनाया तूने |
मैं को हम और हम को अपना बनाया तूने ||
प्यार को परिभाषा दी तूने, गृहस्ती की अभिलाषा दी तूने |
एक अकेलेपन को मेरे , प्यार की आशा दी तूने ||
क्या बयां करूँ तुझे, मेरी आँखों में पड़ लेना |
जो भी झलकेगा नैनो से, बस अपने लिए ही समझ लेना ||
एहसास है अपना ये, कुछ रीत ऐसी ही बनी होगी |
यूँ ही ऐसे न मिलते हम , ये जोड़ी ही ऊपर बनी होगी ||
और क्या दूँ तुझे जन्मदिन पर, क्या अनोखा तुझे दूँ |
तेरा हो चुका मैं , और तेरा ही हूँ ||
“मेरा बचपन ”
रवानी सुनाऊँ वा ,जवानी सुनाऊँ|
आज अपने बचपन,की कहानी सुनाऊँ||
वर्ष चार हमने, को नीर ज्यों नापा|
कहाँ तक उसकी ,दीवानी सुनाऊँ||
थीं हाथ में पुस्तक ,तैरती थी काया !
पतवार बनकर,कत कहानी सुनाऊँ ||
उ नदी की तलहटी,उफनता रहा पानी !
चढ़ी न जवानी , की कहानी सुनाऊँ ||
थी पढ़ने की ललक,औ चलने को पौरुष!
बचपन की रवानी ,की कहानी सुनाऊँ ||
बहुत सुन्दर …