सच्चाई की करके बात दुनिया भर को छ्लते आप
वक्त पडा तो पहचाना क्या समझा क्या निकले आप.
नियम बनाकर स्वयं तोडते आंख बचाकर करते पाप
दुनिया चाहे भाड में जाये आपको बस मिल जाये शराब.
ऊंची बातें ऊची महफिल काली दुनिया के सरताज
जिसमें खाते छेद उसी आती नहीं जरा भी लाज.
इन्क्लाब है एसा लाये दाने दाने कॉ मोहताज
कोई कहां आपके जैसा इन्सा नहीं खुदा है आप.
एक हाथ दें एक हाथ लें बस चांदी के दल्ले आप
दीवारे तक नोचं ले गये आस्तीन में पाले सांप .
मुजरिम करते हैं देखो कैसा मुन्सिफ का इलाज
दर्द यहां पर है खैराती जुर्म हमारा है फरियाद.
शर्म कहां संकोच कहां आप सभी के निकले बाप
दांतो से पकडेगें तिनका दाढी की रखेंगें लाज .
सब पापों एक दिन आखिर होना है यहां हिसाब
दुनिया भर की गाली खाकर कुत्ते से भागेंगे आप.
शिवचरण दास
आप की रचना समसामयिक सुन्दर,बहुत -बहुत धन्यवाद है|आप की सेवा को नमन इस –
जनता हाथ को मलती साफ |
आप तो निकले सबके बाप ||
सोना -चांदी को करते साफ |
शिर भर धरते कसके लात||
खुद सो सो खाते हीरा मोती !
हमको मिलेन मुट्ठी में भात ||
नियम सदा वे जेब में रखते |
गली -मुहल्ला बाइक शराब ||
बहुत बहुत शुक्रिया. आपकी रचना अति सुन्दर है.