तराशकर पत्थरों की तकदिर लिख दी
गुलामी के खिलाफ बगावत की सीख दी
बरसो पडे पत्थरों की धुल हटाकर फुंक दी जान
भीमने बेजुबानो को जुबान और चीख दी
तरस गये थे अछुत काल के अंधियारे मे
भीमकी किरणो ने नयी सुबहे सादिक दी
इन्सानियत से देखे इन्सान इन्सान को
देश की कौम को संविधान की आँख दी
बुझ गया वो जिसने जलाये हजारो दिये
और सूरज मीट जाने तक की तारीख दी