सुंदरता की नई ,
परिभाषा हो तुम,
मेरे जीवन की,
उत्कट अभिलाषा हो तुम ।
चाँदनी छिंटकती है,
भीचती तेरी होंठो से,
क्यो ना मरे कोई,
तेरी इस अदा मनमोहिनी पे।
सागर से गहरे तेरे नयन ,
लिए अलौकिक आकर्षण,
मानो हिमगिरी पर,
पड़े दुधिया चाँदनी ,
होती जिसकी चमक नयनलुभावनी।
हो तुम प्रियंका मेरी आत्मा की,
लो आज कहता हूँ अपनी जुबानी,
तेरे बालो की खुशबु से ,
सुगंधित है मेरी जिंदगानी,
लिये पवन मलयागिरी से सुहानी।
अधरामृत की तरणी हो तुम,
मीठी तेरी बोली,
थार की निर्जन मे भी,
जीवन की जननी हो तुम,
सुंदरता की नई,
परिभाषा हो तुम ।