Homeएस.के. गुडेसरअद्वितय प्रेम अद्वितय प्रेम sk Gudesar एस.के. गुडेसर 30/12/2014 No Comments बड़ा छुपा के रखा सब से तुं मिला तुं खो भी गया मुझ से अब आँसुओं को छुपा के और हंसा नहीं जाता अब रोज चाँद का मुझ पर हसना सहा नहीं जाता कहीं बबुल के पीले फूल कहीं नीला आसमान कहीं नाकाम महोबत की आँखो में झलकती ख्वाहीशे अब रूलाये गी मुझ को Tweet Pin It Related Posts निशारंभ About The Author sk Gudesar Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.