मन की गहरी दूरियों को पाटता है कौन
गैर की मजबूरियों को बांटता है कौन.
इन अन्धेरी खाईयों मे रोशनी तो कीजीये
कितने विषधर पल रहे हैं जानता है कौन.
सत्य क्या झूंठ क्या किसको भला परवाह
पाप क्या है पुण्य क्या अब मानता है कौन.
रूप दौलत मसनदे बस बडी नेमत यहां
मौत भी आ जाये डरकर भागता है कौन.
अपने पैरों पर कुल्हाडी कौन मारेगा भला
घर के भेदी को यहां धिक्कारता है कौन.
तुम करों या हम करें है इबादत ही सही
ईमान की तकरीर यह स्वीकारता है कौन.
दास दिल के आइने में आ गई गहरी दरार
चेहरा धूमिल हो गया पहचानता है कौन.
शिवचरण दास