झूंठ से नजरे बचाये कौन सा सच है
सिर्फ महलों मे समाये कौन सा सच है.
आदमी को आदमी समझा नही कभी
देवता खुद को बताये कौन सा सच है.
रूप उसका खिल उठा है इस कदर
हर कदम पर लड्खडाये कौन सा सच है.
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जिन्दगी का रुख बदल जायेगा
आज अमरत कल जहर बन जायेगा.
खुद को ही हम इस तरहा छलते रहे तो
यह शहर एक खन्डहर बन जायेगा.
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अन्धेरे जब कभी डराते हैं
लोग बुझते दिये जलाते हैं
कभी खुद से कभी किस्मत से हार कर
रोज हम एक नया खुदा बनाते हैं .
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हमने समझा ख्यालात बदल जायेगें
तेरे आने से सब हालात बदल जायेगें
दर्द के दौर का भी खात्मा होगा एक दिन
हम गरीबों के भी हालात ्बदल जायेगें.
शिवचरण दास
अन्धेरे जब कभी डराते हैं
लोग बुझते दिये जलाते हैं
कभी खुद से कभी किस्मत से हार कर
रोज हम एक नया खुदा बनाते हैं
खूबसूरत शायरी
बहुत बहुत शुक्रिया आभार