दिल भी मेरा जल रहा
जुबां भी खाक हो गयी
रूह भी है तड़प उठी
इन्शानियत चाक हो गई
दनदना रही है गोलियां
मासूमों के जिस्मों पर
खून भी है उबल रहा
आँख भी लाल हो गई
तड़प रहा है बचपन
माँ बाप के हाथों मे
गुरुओं का भी खून बहा
लहूलुहान जमीं हो गई
चला रहे हो चाकू तुम
काफिरों की जुबान पर
अब बेगैरत तुम्हारी
खुदाई कहाँ सो गई
कौन खुदा को मानते हो
तुम बर्बर ,बुतपरस्त
बस दहशतगर्दी ही तुम्हारा
धर्म ईमान हो गई
रचना अच्छी है।ऐसा ही लिखते रहे।हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते है । जो बोया है वही काटना पङेगा
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
इस शुभकामना के लिए