(16 दिसंबर 2014 को पेशावर के स्कूल में आतंकवादियों ने हमला किया था, जिसमें कई मासूम बच्चों की मौत हो गयी और कई घायल हुए|
एक कविता उन मासूम बच्चों के नाम …)
मेरी कॉपी के पन्ने लाल हो गए हैं…
मेरे दोस्तों के ठहाके चीख़ों में तब्दील हो गए हैं…
आज मेरे स्कूल की घंटी नहीं बज रही है…
आज मेरे स्कूल में गोलियाँ बरस रही हैं…
क्यों मेरी कुर्सी और मेज़ बिखरे पड़े हैं
क्यों मेरी शर्ट पर ख़ून के छापे बड़े हैं
आज मेरा दोस्त मुझसे टिफ़िन नहीं बाँट रहा है…
आज क्यों मेरा टीचर मुझे नहीं डॉंट रहा है….
आज मेरे स्कूल की घंटी नहीं बज रही है…
आज मेरे स्कूल में गोलियाँ बरस रही हैं…
मैं अाज अनगिनत यारों की क़ब्र पर मिट्टी डाल कर आया हूँ…
मैं ख़ुद अपने हाथों से अपने बचपन को दफ़ना कर आया हूँ…
आज मेरे स्कूल की घंटी नहीं बज रही है…
आज मेरे स्कूल में गोलियाँ बरस रही हैं…
गरीमा मिश्रा
Mashallah rom rom jhakjor ho gaya..Mann ko choo gaya
Dhanyawad Nishaji