शम्मा नहीं जलाऊॅगा……
रचना :- अवधेश कुमार मिश्र रजत
मासूमों की मौतों पर अब शम्मा नहीं जलाऊॅगा।
तख्ती लेकर हाथों में कोई राग नया ना गाऊंगा।।
सदियों से हम ऐसे ही अब तक ये करते आये हैं,
अपनों को फिर भी हम सब यॅूही खोते आये हैं।
निर्दोषों की लाशों पर जो रोते हैं गम उनका है,
अबतक हम यॅूही बस अपने अश्क बहाते आये हैं।
हर बार नया सर होता है पर गोली वही पुरानी है,
सिसक रहा है बचपन अब तो सहमी हुई जवानी है।
शामिल हॅू मैं गम में उनके पर मातम नहीं मनाऊंगा।।
कत्ल हुआ मासूमों का जब हर ओर चीख पुकार हुई,
कांप उठी धरती भी उसदम ऐसी प्रबल चित्कार हुई।
विद्या के मन्दिर में ऐसा खेल घिनौना वो खेल गए,
पर हिम्मत ना हारी बच्चों ने गोली उनकी झेल गए।
मासूमों पर कहर क्यॅू ढाया कहकर अल्लाह हू अकबर,
इस करनी पर मिल पायेगी क्या ठौर खुदा के दर पर।
गर यही है फरमाने खुदा तो ना ईद कभी मनाऊंगा।।
लौट गए घर को सब अपने नमाज़े जनाजा पढ़ते ही,
भूल गए हर दर्दोगम नया सूरज आकाश में चढ़ते ही।
घर में पाला साँप तो उसको रहम न तुमपर आयेगा,
विषधर है जो इक ना इक दिन काट तुमको खायेगा।
इस्लाम हुआ बदनाम पुनः जख्मी कुरान की आयत है,
कर्बला के शहीदों से क्या मिली इन्हे यही विरासत है।
शब्द हुए हैं मौन रजत अब और न कुछ कह पाऊंगा।।
बहुत ही अच्छी कविता है
आशा करता हूँ आप लिखते रहेंगे