भूख की मारी हुई यह जिन्दगी
दर्द की आरी हुई यह जिन्दगी.
पावं काटे हैं जमाने ने यहां
सिर्फ बैशाखी हुई यह जिन्दगी.
झूंठ के पलडे सदा भारी रहे
ऍसी व्यापारी हुई यह जिन्दगी.
मौत के लब पर दहकती आग है
कैसी महामारी हुई यह जिन्दगी.
सिसकियां निकली गरदन उड गई
सख्त लाचारी हुई यह जिन्दगी .
उस नजर की ताजगी मन बसी
आपकी आभारी हुई यह जिन्दगी.
यातना अब तो सही जाती नही
मौत से भारी हुई यह जिन्दगी.
शिवचरण दास