मासूमियत का संहार
हमला चाहें पाकिस्तान के पेशावर में हो
चाहें फिर मुंबई में हो
चाहें निर्दोष नागरिकों का क़त्ल हो
या फिर मासूम स्कूली बच्चों का निर्मम नरसंहार हो
मरती तो इंसानियत ही है
होता तो मानबता का क़त्ल ही है
एक बार फिर से इन
आंतक बादियों ने दिखा दिया है कि
बे किसी के अपने नहीं हैं
उनके लिए हिन्दू मुस्लिम एक जैसे हैं
उनके लिए जिंदगी की कोई अहमियत नहीं है
बे सिर्फ और सिर्फ हुकूमत करना चाहतें हैं
समय की मांग है कि
हम सबको इनके इरादे समझ कर
ये लड़ाई अंजाम तक ले जाएँ
मदन मोहन सक्सेना
जो हो रहा है नही चाहिऐ बच्चे तो बच्चे है वो चाहे हिन्दूस्तान के हो य पाकिस्तान के बच्चो के साथ तो ऐसा नही चाहिऐ और आतंकबाद तो चाहिऐ ही नही इन्सान बन कर ही जीना चाहिऐ