___________* पीड़ *_____________
पेशावर कुकृत्य से मन पे बहुत पीड़ा हुई उसी के संदर्भ में दिल में कुछ जज्बात उभरे कैसे व्यक्त करू समझ नही आता !
आन बसा फिर शैतान इंसानो के वेश मैं !
हुआ कुकृत्यो का बोलबाला सारे देश मैं !!
ईमान-धर्म इंसानो मैं रहा अब शेष नही !
किस रूप में आ जाए मौत का भेष नही !!
कितना हिंसक, कितना क्रूर और भयावह !
नरभक्षी पशुता की सबसे बड़ी पहचान यह !!
दिन प्रतिदिन हो रहा अन्याय अथाह !
शुन्य बनी मनुष्य संवेदना लापरवाह !!
जाने कब,कहाँ, और कैंसे हो जाए जीवन अंत !
खो रहे अस्तित्व स्वयं ही, हम जीवन प्रयन्त !!
पनपता हुआ पल पल, हर मन आत्म द्वेष !
जूझ रहे सब दुविधा से बसा दिलो में क्लेश !!
बंद हुए सब द्वार वफ़ा के नही रहा पथ शेष !
लगा आघात ग्रसित है मन लगी गहरी ठेस !!
विचलित हूँ, मन, आत्मा और पूर्ण शरीर से !
निर्बल हूँ असहाय हूँ, कैसे उबरु इस पीड से !!
Behad khoobsoorat…….दिन प्रतिदिन बिगड़ते हालात…सामाजिक व्यवस्था…लाचारी का…निसहाय का रूप पीड़ा में उभर आया है…लाजवाब……..