!! शादी का पंचनामा !!
हम अजीब रस्मे रिवाज अपनाते है,
घर फूंक तमाशा देखते और दिखाते है
उम्र गुजार देते है सारी दौलत कमाने में
और बेटी को दहेज के नाम चढ़ा देते है !!……………II १ II
फकत इतने से तो हमे सुकून नही मिलता
बड़े शौक से अपनी इज़्ज़त भी गवाते है
घर बुलाते है बरात के नाम पर हुड़दंगी जुलुस
जो सजे धजे मंडप को कूड़ादान बनाते है !!…………..II २ II
ब्रांड तक नाम पता नही होता जिनको
इस दिन वो भी दो घूँट देशी लगाते है
कूदते है स्टेज पर चढ़कर कंगारु जैसे
सारी व्यवस्था की बैड बजा रहे होते है !! ……………II ३ II
इनमे से कुछ तो सबके बाप होते है
फटी पेंट डाल गले, पागल कुत्ते सा
खाकर रसगुल्ला आइसक्रीम के साथ
और नमक कम बता रहे होते है !!…………………II ४ II
सादिया बीत जाती है नहाये हुए जिनको
ऐसे भी कुछ महापुरुष आये होते है
उठा डियोड्रेंट और परफ्यूम दूल्हे का
खुसबू के नाम पर दुर्गन्ध मचाये होते है !!……………II ५ II
योगदान इस शुभ कार्य में
महिलाओ का भी कम नही होता है
सुन्दर स्त्री भी अतिसुन्दर दिखने की ललक
नौटंकी का जोकर बनने से परहेज नही होता है !!…… ..II ६ II
एक हाथ में रहता है रस मलाई का दोना
दूजे से गोलगप्पे का पानी मांग रही होती है
निकल रहा होता है धुँआ कान से, आँखो से पानी
सारे मेकअप की वाट लगी होती है !!……………….II ७ II
उनमे भी कुछ हस्ती विशेष मिलती है
पहनती है आकर्षक पोशाकें अजब गजब
सम्भालना मुश्किल होता है जिनमे खुद को
और न ही पोशाक संवर रही होती है !!……………….II ८ II
सजा संवरा बैठा बलि के बकरे की तरह
दूल्हे राजा का तो हाल बुरा होता है
खोलता खून, देख दोस्तों, रिश्तेदारो के कारनामे
फिर भी दिखावे की हसी हस रहा होता है !!…………….II ९ II
मत पूछो हाल इस दूल्हे के बाप का
पारा उसका सातवे आसमान पर होता है
दहाड़ता फिरता है शेर की तरह इधर उधर
हर काम में कमी निकाल रहा होता है !!…………. …II १० II
हाल दुल्हन का भी कुछ बुरा नही होता है
हवन कुण्ड की वेदी पर जीवन चढ़ा होता है
रोता है अंतर्मन देख दुनिया की रीत निराली
क्या बेटियाँ सचमुच होती, माँ बाप को भारी………II ११ II
कौन जाने व्यथा दुल्हन बनी उस बेटी की
बाध्य है जो, बाबुल का घर त्याग देने को
कशमकश में डूबा मन,जिंदगी बने या बिगड़ेगी
होगा देवी सा सम्मान या, दहेज़ की भेंट चढ़ेगी ………..II १२ II
इस सारे उत्सव के आयोजक प्रायोजक,
बेटी के बाप का हाल बुरा होता है,
गँवा देता है पूँजी उम्र भर की
धन और मान सम्मान भी बेटी सहित,
बना रहता मूकदर्शक लाचार बेबस सा
अपने हाथो से सजाई दुनिया को
लुटता देखा रहा होता है !!………………………II १३ II
इतने कुछ होने पर भी झूमे मस्ती से
चलो सब कुछ अच्छा हुआ कह रहा होता है
हो गई बेटी विदा घर से ख़ुशी ख़ुशी
बैठा सुने घर के किसी एक कोने में
बेटी की यादो में डूबा चैन की सांस ले रहा होता है !!……II १४ II
मनाता है अपनी बर्बादी का जश्न शौक से
जो दुनिया का इकलौता इंसान होता है …!!
क्योकि वो एक बेटी का बाप होता है
हाँ, ऐसा ही एक बेटी का बाप होता है …!!
बेटी का बाप होता है….$$$$$$$$ ….. !!………..II १५ II
डी. के. निवातियाँ ……..!!!!
सर क्या कहू, निशब्द हू मै फिर भी लिखता हू……. शादी की सजीव प्रसारण देखने को मिल गया इस रचना मे, इतना ही नही रिति रिवाज और परम्परा की वेदी पर जो गलत चला आ रहा है, उसपर इतना अच्छा चुटीला व्यंग………………. कोटि कोटि प्रणाम……….।
सुरेन्द्र जी , भारतीय समाज की यही सच्चाई है जो अक्सर प्रत्येक वर्ग में देखने को मिलती है, …………..तहदिल से शुक्रिया जो आपके साहित्य प्रेम ने अपने अमूल्य वचनो से अनुगहित किया, आपके इस निस्छल प्रेम का ह्रदय से आभारी………..!!
आपकी रचना से दिल रो रहा है….जो हाल आपने ब्यान किया है होता अक्सर ऐसे ही है….कब हम बदलेंगे….कब तक बेटी के घर वाले यूं ही सहते रहेंगे….यह तब तक कम नहीं होता जब तक लड़के वाले खुद भी नहीं समझते….आपकी रचना के भाव प्रफुलित हों….सार्थक हों….कोई ऐसा शब्द नहीं जो इस रचना का मूल्यांकन कर सके…..आप की कलम की ही पहचान है ऐसी रचनाएं…….नमन आपको……
बब्बू जी, यहिभार्तिया समाज की सच्चाई है जो अक्सर प्रत्येक वर्ग में देखने को मिलती है, …………..तहदिल से शुक्रिया जो आपके साहित्य प्रेम ने अपने अमूल्य वचनो से अनुगहित किया, आपके इस निस्छल प्रेम का ह्रदय से आभारी………..!!