चिराग
मंदिर में तो कभी आरती में जलाया जाता हूँ I
दिव्य ज्योति हूँ देव पूजा में सजाया जाता हु II
जलता हूँ महफ़िल में तो शमाँ बुलाया जाता हूँ I
कर रोशन घरोंदे लोगो के खुद को जला जाता हूँ II
कठपुतली बन जमाने के हाथो नचाया जाता हु I
दुनिया के हाथो जला और बुझा दिया जाता हूँ II
वैसे तो अँधेरा कायम है जमाने भर के दिलो मैं I
उसमे आलोक की एक लौ जगाना चाहता हूँ II
सीखा है सूरज से, किरण बनकर चला आता हूँ I
खुद जलकर जमाने भर को राह दिखलाता हूँ II
फेहरिस्त लम्बी है कई नामो से पुकारा जाता हूँ I
कहते है “चिराग” मुझे, रोशन जहान कर जाता हूँ II
डी. के. निवातियाँ ————