चाह जब किसी की बेपनाह हो गई
जिन्दगी अपनी बडी गुमराह हो गई.
जब कली थी तो बहुत मासूम थी
फूल बनते ही तबाह हो गई.
खतरों से खेलना आता जिन्हॅं
मुश्किले उसकी तमाम हो गई.
मन्जिलो का गर इरादा कर लिया
पत्थरों के बीच राह हो गई.
अर्थ की ताल पर नाचती आत्मा
किसी कोठे की कलाकार हो गई.
अब कहां फुरसत बात करने की
जिन्दगी बडी तेज रफ्तार हो गई.
दास हमकॉ तो बस यहां पत्थर मिले
तालियां तो बस तुम्हारी यार हो गई.
शिवचरण दास
बहुत खूब
बहुत बहुत आभार
bahut aacha lakhte ho sir ji