तु है तो जहाँ है, तु कहीं भी रहे
बेखौफ तेरे दिल में, तेरा मित रहे ||धृ||
बिसरे ना गुल तुझे, तुने राह में बिखरे
इक गुल की ये मुराद रही, इक बार तु गुजरे
वो खुशबू लिए हवा की, बंदीश के परे
उडकर नहीं आ सकता, ये कहने के लिए
तु है तो जहाँ है, तु कहीं भी रहे
बेखौफ तेरे दिल में, तेरा मित रहे ||१||
गुल सांझ होते-होते, सकुचा गये जमीं पर
धूलदान हो गये और, मुरझा गये वहीं पर
वो खुशबू लिए, मिट्टी की बंदीश के परे
उडकर नहीं आ सकते, ये कहने के लिए
तु है तो जहाँ है, तु कहीं भी रहे
बेखौफ तेरे दिल में, तेरा मित रहे ||२||
निगले हलक से गुलने, मचले हुए इरादे
ये जानकर कही तु, उसे ये ना जता दे
वो खुशबू लिए, जनम की बंदीश के परे
उडकर नहीं आ सकते, ये कहने के लिए
तु है तो जहाँ है, तु कहीं भी रहे
बेखौफ तेरे दिल में, तेरा मित रहे ||३||
रचनाकार/कवि~ डॉ. रविपाल भारशंकर