रूबरू सी ये कलियाँ
हर तरफ फैली हुई
मृदु मृदु पंख फैलाएं
तितलियाँ उड़ चली
माटी की मूरत नाजुक
कलियाँ सुन्दर खिली खिली
स्याही की कणिकाएं लपेटे
नभ रंगों में ये घुली हुई
पर्वतों पर बैठी अलसाई
धुप चमकी उजली हुई
मोम का घर बनाये
रेशम जैसे सिली हुई
अल्हड अटखेलियां दिखाएँ
लताएँ जैसे झुकी हुई
रज भी शीश लगाएं
जैसे रहमत बनी हुई
छटा और घटा बनाये
र्ऋतुऐं जैसे मिली हुई
सुन्दर सुन्दर ये बेटियां
नेमतें प्रभु की दी हुई