दिल जला ही नही धुवाँ उठने लगा
मन मंदिर मे मेरा दम घुटने लगा
हर जंजीर तोड दु सोचा था मगर
दिवारों से प्यार तब जुडने लगा
हर लकीर मोड दु सोचा था मगर
मेरे हाथों से मेरा सर फुटने लगा
घर खुदाका जोड लु सोचा था मगर तिजारत मे खुदाई खुद लुटने लगा
फिर कली खिलने दु सोचा था मगर अंधेरों की यारी से साया रुठने लगा
रचनाकार/कवि- धिरजकुमार ताकसांडे (९८५०८६३७२२)