!! झूठी ही सही !!
किताब मैं रखा है आज भी वो तेरा दिया गुलाब !
एक निशानी मानकर,भले अब वो सुखा ही सही !!
एक-एक टुकड़े ने बयान की है मेरी असलियत !
गुरुर है मुझे उस दर्पण पे, भले वो टूटा ही सही !!
नजरे मिला कर चुरा ले इतना भी कम तो नहीं !
मेरा होने का सबूत तो है , मुझ से रूठा ही सही !!
दरमियाँ हमारे कुछ तो रहे,भले फासले ही सही !
दिल को तसल्ली तो है मिलन की,झूठी ही सही !!
क्या जरुरत पड़ी थी दूर जाने की तड़पने के लिए !
पास रहकर भी दूरिया तूने रखी थी,कम तो नही !!
भेज अगर देते कोई संदेशा,गैर के हाथो ही सही !
जीने की एक वजह तो मिल जाती झूठी ही सही !!
डी. के. निवातियाँ _________!!
very beautiful poem..
उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!