“सर कटता है सैनिक का तो किसी का क्या जाता है।
बैठ नेता दिल्ली में मुर्ग मुसल्लम खाता है।
गिराकर लाशें अक्सर हमारे सैनिको की,
वो पिद्दी भर का देश हमें चिढाता है।
बहुत हुये पोखरण परीक्षण,
अब असल परीक्षण की बारी है।
अब साबित करना है हमको,
कि अभी बची हममे खुद्दारी है।
कभी पंजे नापाक चुभोता,
हमारी सशक्त भुजाओं में।
कभी चीन घुसता आता है,
हमारी चाक चौबन्द सीमाओं में।
क्यूं बांग्लादेश पर भॄकुटी ताने रह जाते है,
ऐसा क्या है जो हम सब कुछ यूंही सह जाते है।
ना होता 65 और 71 ना तो करगिल होता,
गर नेताओ मे भी सैनिक सा दिल होता।
ना जलता तिरंगा कश्मीर में,
वन्देमातरम हर जुबां में शामिल होता।
गर नेताओ मे भी सैनिक सा दिल होता।
अहिंसक है हम नपुंसक नही,
ये सिद्ध हो जाने दो।
खोये है जिन मांओ ने लाल,
उनकी आंखों में चमक आ जाने दो।
जब तक वो कश्मीर छोड लाहौर लाहौर न चिल्लायेंगें,
तब तक वो शैतान मानवता की भाषा सीख न पायेंगें।”
जय हिन्द, जय हिन्द की सेना – डॉ रविन्द्र कुमार
यह परिस्थितियों का वास्तविक चित्रण है।
धन्यवाद॥
कड़वी सच्चाई को उजागर किया है ! बहुत-२ धन्यवाद !!
प्रिय निवातिया जी, आपका इतनी सधी प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद। मेरी अन्य कविता “सशक्त होकर उभरे कुछ ऐसे अपना हिन्दुस्तान” को भी आप पढ सकते है।
आभार सहित
डॉ रविन्द्र कुमार
अति सुंदर
प्रिय भास्कर आनन्द जी, आपकी प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद। यह कविता मै भारत माता के वीर सपूतों को समर्पित करता हूं। मेरी अन्य कविता “सशक्त होकर उभरे कुछ ऐसे अपना हिन्दुस्तान” को भी आप पढ सकते है।
आभार सहित
डॉ रविन्द्र कुमार
कुमार रविन्द्र जी, बहुत कुछ कह दिया और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। काश इन नेताओं को कुछ तो समझ में आए।
प्रिय अरूण जी अग्रवाल, आपका इतनी सधी प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद। दर असल मैनें यह कविता लांस नायक सुधाकर सिंह और लांस नायक हेमराज के सर काटने की पाकिस्तानी नापाक हरकत के बाद लिखी थी। यह कविता मै भारत माता के इन वीर सपूतों को समर्पित करता हूं। मेरी अन्य कविता “सशक्त होकर उभरे कुछ ऐसे अपना हिन्दुस्तान” को भी आप पढ सकते है।
आभार सहित
डॉ रविन्द्र कुमार
dear ravindra. Very nice. I like it.
Thank you sir…