Homeअरुणा रायऔर तीन दिल चाक हैं और तीन दिल चाक हैं अनिल जनविजय अरुणा राय 17/01/2012 No Comments चन्दन की दो डालियाँ जब टकराईं तो पैदा हुई अग्नि और लगी फैलने चहुँओर ख़ुशबू तो एक ही थी दोनों की सो उसने चाहा कि रोके इस आग को पर ख़ुद को खोकर रही उधर आग थी कि खाक होकर रही अब न चंदन है ना ख़ुशबू है चतुर्दिक उड़ती हुई राख है और तीन दिल चाक हैं… Tweet Pin It Related Posts जो मिरा इक महबूब है यादें और भूलना रिक्शा टुनटुनाता है About The Author अनिल जनविजय कविता का पाठक हूँ और दूसरी भाषाओं की कविता का अनुवाद करता हूँ। Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.