खट-खट खट-खट निपट अकेला
साथ न उसके बुग्गी-ठेला,
करे सुरक्षा जिस छत नीचे
उसके नीचे झाम-झमेला।
फिर चलता फिर रुकता कर्मी
एक अकेला निर्बल कर्मी,
कह न सके वह दिल की बातें
कुड़-कुड़ कुड़ता जाए कर्मी।
अपना दुःखड़ा किसे सुनाए
पेट मसककर रोता जाए,
भूखा है हकदार तुम्हारा
बोल कहाँ से खाना आए?
मुकेश शर्मा
09910198419
काबिल ए तारीफ
बहुत बहुत आभार अग्रवाल जी