निर्झर निर्झर
कोमल कोमल
पंख तुम्हारे
प्यारे हैं
तुम तूलिका
हो रंगों की
मोती अधरों पर
वारे हैं
घाट घाट पर
ज्योति सुशोभित
नयन नींद से
हारे हैं
समेट कर तुम
मोती आई
जगमग मेरे
घरद्वारे हैं
अठखेलियां करती
तेरी नादानियां
मासूम तेरे सारे
इशारे हैं
ओ बेटी तेरा
कृतधनी हूँ
जो तेरे कदम
घर पधारे हैं
मेरा दिल आपका आभार व्यक्त करना चाहता है। क्या वर्णन किया हे बिटिया के कदम घर में पड़ने पर। आपकी ये कविता बहुत लोगों को प्रेरणा देगी बेटियाँ बचाने की।
धन्यवाद
धन्यवाद आपका
हौसलाअफजाई के लिए arun g