ये गर्मी के मौसम में छाया सजी है,
कहीं सुर्ख़ जोड़े में दुल्हन सजी है।
ये पायल कहीं शोर करने लगी है,
या बहकी हुई ये हवा चल रही है।
ये पायल के घुँघरू, या पत्तों की छम-छम,
या चिड़ियों के पर फड़फड़ाने लगे हैं।
परिंदों को देखो उड़े जा रहे हैं,
यहीं पास में एक नदी बह रही है।
वो बादल है क्या जिसने सूरज को घेरा,
नहीं धूप पर रौशनी आ रही है।
किसी ऐसे मौसम में बैठा मैं सोचूं,
कि तू पास थी दूर क्यूँ जा रही है?
ये सच है, समय भी है मौसम सरीखा,
धूप फिर से ये देखो बढ़ी आ रही है।
– हिमांशु