1-॰
जिस आँगन में खेलती
गई अब उससे दूर।
माँग डालकर ले गया
रिश्तों का सिन्दूर॥
2-
चुटकी भर सिन्दूर से
गई समन्दर पार।
मात-पिता को दी खुशी
छीने सब अधिकार॥
3-
ऐसी कैसी भांवरें
अरु कैसे मंगलचार?
बहना मुड़कर देखती
खाते बंधु पछाड़॥
4-
अजब-अनोखी रीति अरु
अजब-गजब का सार।
मात-पिता की यादकर
बही अश्रु की धार॥
5-
वो सिन्दूर किस काम का
जाके तन नहीं लाज?
अपनी ही तन-संगिनी
अपनी पर ही गाज॥
6-
भगनी तेरी नाव पर
करे जगत यह सैर।
ठोकर सबकी नाव पर
अरु मल्लाह से बैर॥
7-
रहमत रहिमन यूँ करी
जैसे बरसा नीर।
आँखें-आँखें भीगतीं
पलक हुई ना पीर॥
8-
देकर दहेज मुरीद ने
किया प्रभु आगाज़।
पुत्री मेरी की प्रभु
रखना निशदिन लाज॥
9-
रोऐ जनक इस तरह
ज्यों बालक नादान।
दुःख से सास-ससुर के
जामाता अनजान॥
10-
नारी रचना ब्रह्म की
मत कीजै निष्प्राण।
बहुधा नारी कोख में
छुपा लक्ष्य प्रमाण॥
वाह!..पलक हुई ना पीर
डॉ0रविपाल भारशंकर जी,आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार।