रागिनी का अभिशाप ,हो रहा ऋचा विलाप ,उर दामिनी कलाप ,खड्ग को उठा रहा |
पीर प्रतिमान काल, ब्याल ज्वाल जाल बन ,संयम को छोड़ नाग, पाश मंत्र गा रहा ||
साधना विधान पूर्ण ,अर्चना व ध्यान पूर्ण ,क्रांति संबिधान पूर्ण , हठ योग छा रहा |
होनहार को न कोई, टाल सका आज तक ,होनी जो है होनी व्यर्थ, शिव अकुला रहा ||
राणा जी की शौर्य शक्ति भामाशाह देश भक्ति , भूषण कवित्व शक्ति मुझमे समाई है |
निश्चित है शुम्भ औ निशुम्भ चंड मुंड नाश चंडी प्रचंडी रण भुसुंडी धार धाई है ||
पीर से अधीर वीर चूम चुका शमशीर ,शिव तांडव की घटा अम्बर में छाई है |
भूषण का छंद शिवा का रण प्रबंध देख मातु कालिका की जीभ आज ललचाई है ||
ध्यान अब करो महाकाली भद्रकाली माँ का मातु शारदा को विदा करना जरूरी है |
भैरव बजाओ राग यमराज गीत गाओ तख़्त ए सियासत पलटना जरूरी है ||
देश द्रोह गन्दगी से उगा है जो पीर गिरि पर्वत वो पीर का पिघलना जरूरी है |
मातु उर में विंधा है भ्रष्टाचार का जो तीर भर्ती के उर से निकलना जरूरी है ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548
नमस्कार अवस्थी जी !
सच कहा “जो होनी है सो होनी है”
पर भाईसाब आपको मैं क्या याद दिलाने की धृसटता कर सकता हूँ कि, दुर्गा सप्तसती में रक्तबीज वध प्रसंग में ब्रहमाणी ने भी योगदान दिया था, सो शारदा को भी हम रण भूमि से दूर नहीं रख सकते क्योंकि हमारी तो संस्कृति ही रही है,
“मुख में श्रुति गान हमारे, एक हाथ मे परशु धारे।
कुरुक्षेत्र कि रणभूमि में भी हमने गीता के बोल उचारे।।
आपके ये घनाक्षरी दिल कि गहराइयों में डूबी वीरता को पुनः प्रज्ज्वलित करने का काम कर रहे है।
मनोज चारण
आदरनीय श्री मनोज चारण जी आप की बात सही है ..लेकिन अब इस छंद में जो लिख गया है सो लिख गया आगे से आपकी बात को ध्यान रखूंगा ..और आप कुशल मंगल से हो …आप की जय हो ….
Namskar