1-॰
दर्द मेरे भी जिगर कुछ
कम नहीं यारो,
जां लटकी है
खते-इंतजार में यारो,
किसे मालूम गर्दिशे-मुदाम
हमनशीं का मगर,
वक्त है जंगे-मआल के
इंतजार में यारो।
2-
हमको तुम्हारे हुस्न में
दिखता नहीं है चाँद,
लगता है उतर आई हो
जन्नत जमीन पर,
तुम हो तुम्हारा हुस्न है
रुख़सार हैं गुलाब,
बाल हैं कि हो घटा
या कि जन्नत जमीन पर।
3-
गर लगा दे आग तो
ज़हराब कह दूँ,
यूँ भी किस कली को
खराब कह दूँ,
मतलब को गर मेरे
वाजिब कहे कोई,
तसल्ली को सही
इल्तिहाब कह दूँ।
4-
कीकर के पेड़ पर
कलम गुलाब की,
वैसे भी काँटे
कम न थे यारो,
हम तो लुटे हैं
तसव्वुर में उनके,
मिलकर लुटेंगे
कब तलक यारो?
5-
तसल्ली जुनूं को
जिस वक्त होगी,
‘मुकेश जी’वो दास्तां
कितनी मस्त होगी,
जुर्म फिरकापरस्त
तूफां का क्या,
हलाल गर्दन अपनी
हर वक्त होगी।
शब्दार्थ-
1-गर्दिशे-मुदाम/कष्टचक्र
2-जंगे-मआल/परिणाम की लड़ाई
3-ज़हराब/विषजल
4-इल्तिहाब/अग्नि,आग
5-रुख़सार/कपोल
6-तसव्वुर/कल्पना,