चाँद का रूप
आज सजना के रूप में ,
मुझे याद आया !
सुबह से लेकर
अब तक शाम हो गयी ,
पर साजन कहीं भी मुझे नज़र न आया !
बड़े दिनों बाद
आज के दिन ,
छत पर साजन चाँद के रूप में नज़र आया !
सज के मैं
सुबह से तुम्हारे लिए सजना मैं ,
तुम्हारे ही लिए
मैं खुशी से उपवास रख रही !
तुम रहना संग मेरे साथ ,
ओ मेरे साथिया
ऐसी मैं आज भी कामना कर रही !
;-हरमीत शर्मा कवि