हे ईश्वर तू कर कृपा, मुझे तनिक मानवता का ज्ञान दे।
मेरी सोच में ईर्ष्या न हो, कोई तो ऐसा वरदान दे।।
मैं दिन भर दुखी रहा करता, मुझे सुख किसी का रास नहीं।
आत्म-चिंतन की भूख जगे, मुझे कुछ ऐसा रसपान दे।।
जल चुका क्रोध में अब, विचार मन में झुलस गए।
बहुत दिनों की बात है, विनोद मन में बनें हुए।।
बुझ जाए अग्नि और शीतल मन हो ऐसे अरमान दे।
हे ईश्वर तू कर कृपा, मुझे तनिक मानवता का ज्ञान दे।
अरुण जी अग्रवाल
बहुत सही लिखा है आपने
धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए।