
क्यों होता है बार-बार
पास रहकर भी पास न तुम,
क्यों लगे जैसे कि यहीं कहीं हो तुम,
ह्रदय में जो बसे तुम्हारा जो प्यार,
हर बार तुम से दूर न रह सके
बार बार जो सुनती हूँ
तुम्हारी ही पुकार,
कहीं तो है प्यार,
कहीं तो है तुम्हारा ही ख्याल…..
लगे कि मैं हूँ बेहाल,
आपकी कविता में सच्चाई है लेकिन ये बेबसी है या भूंख प्रेम की !
यह वास्तविक प्रेम है….इस प्रेम में बेबसी है….प्रेम की भूख नहीं
बहुत सुंदर है आपकी कविता!
प्रशस्ति में ये चार लाईने..
“बारीश का तु झरना, फुलों की लडी
तेरी उल्फत में मैने ये रचना पढ़ी
उठाओ दिल तो, गम अपार है
मिलनसार जिंदगी ही यादगार है
हरएक पल तो खुश-निसार है
यही लगे तुहीं तो प्यार है..”