कब बंद आँखों से सपने देखने लग गयी?
दोस्त तो बिछड़ गए,
कभी सच्चाई का पता न चल सका,
बैठी थी मैं अकेली सोच मैं पड़ गयी,
क्यों हैं लोग ऐसे,
कभी पैसों के पीछे भागते हुए,
पैसों के बल पर,
अपने आप को शक्तिशाली बताते हुए,
क्या मौत को खरीद सकेंगे??
इन पैसों से,….
तो क्यों हैं ये ऐसे फिर भी………..
कब बंद आँखों से सपने देखने लग गयी?
दोस्त तो बिछड़ गए,
कभी सच्चाई का पता न चल सका,
बैठी थी मैं अकेली सोच मैं पड़ गयी,
क्यों हैं लोग ऐसे,
कभी पैसों के पीछे भागते हुए,
पैसों के बल पर,
अपने आप को शक्तिशाली बताते हुए,
क्या मौत को खरीद सकेंगे??
इन पैसों से,….
तो क्यों हैं ये ऐसे फिर भी………..
Bahut achche sense hai.
poem achchi hai.
poem achchi hai.