निहारती हुई….,
आसमान को आज शाम को,
देखती हुई ,बैठती हुई, इस सुन्दर सा आकाश जो,
इस सुन्नेहले पल को कहीं थम न जाए,
सूर्य को डूबती हूई….
देखती हुई मैं हैरान हुई ,
जो शायद करे हमें ढंग,
तो दूसरी ओर….पूर्णिमा देखती हुई मैं….रात का समय
हाँ,यहीं तो है खूदरत का करिश्मा……..
शायद आपके सब्र का बाँध टूट रहा है करिश्मा जी