1-
गिरा दे जिस तरह कागज
कबाड़ा चुनने वाली के,
हाथ में जाकर
गुजारा पेट का करता।
2-
लगाई आग लग गई
लगी फिर बुझने भी,
वक्त ने माहौल कुछ
इस तरह बदला।
3-
बनीं हो इश्क ही जन्नत
कहाँ फिर दिल रवां होता,
नहीं दम भरने को राही
सनम मेहरबां होता।
4-
खातिर जिस वतन की
लुटाया तसव्वुर अपना,
हकीकत हिन्दुस्तान की
नजर आती उस शहीद में।
5-
मसीहा गर खुदा है
तब तू मलक का क्या?
बेवजह,बेकार ही
जेहाद से बर्बादियां करता।
6-
लुटेगी आबरु कब तक
वतन का इम्तिहां कितना,
खुलासा इस हकीकत का
करोगे कब तलक यारो?
7-
बनाना ख्वाब से सीखो
झरोखा हर दिन नया कोई,
मिले पर मुस्कुराना
मिटे पर भूल जाना।
8-
एक हम हैं कि ख्वाब
गैरों के सजाए बैठे हैं,
अपने घर अपना ही
तसव्वुर लुटाए बैठे हैं।
9-
करके तेरा खयाल हम
बैठे रहे खामोश,
पाकर तेरी तस्वीर को
तकिया उठा लिया।
10-
न कर इश्क की बातें
कि नादां रात होने दे,
आदमी की आहें भी
मासूम होती हैं।
11-
आतिशकदां हैं दिलो-जां
कैद में उसकी,
बनी हो कोई दुल्हन
मेरे शौहर की।
12-
किसी का कुछ न बिगड़ेगा
इस तकदीर से आगे,
बनाकर हम खुदाया
उस हसीं को छोड़ देवें क्यूँ?
[email protected]/9910198419
यही दस्तूर दुनिया का, फ़लक तक देखते सब है,
नजारा दिल को जो भाए, वो आंखे है कहाँ सबकी।।
वाह, बहुत खूब और धन्यवाद भी आपका एक तो एक ही पोस्ट मे काफी सारी सायरी-शेर लिखने के लिए जो आपने मेरी बात पर गौर भी किया। दूसरा मेरी कविता पर टिप्पणी के लिए भी आपको धन्यवाद।
धन्यवाद मनोज जी,आपके परामर्श में यथार्थ की अनुभूति थी।इसलिए तत्काल सभी रचनाओं को दुरुस्त किया गया।इस मित्रवत व्यवहार के लिए आभार।