सजाता है गुल
गुलदान के लिए,
क्यों मिटाता है
मेरी हस्ती बता,
क्यों टिकी हैं मुझी पे
निगाहें तुम्हारी,
फर्ज का मेरे भी
मकसद बता।
कांटोँ पे चलके
अर्थी को जाना,
मिली है मुहब्बत की
मुझको सजा,
न की मुहब्बत
न दिल लगाया,
न मुझसे पूछी
मेरी रजा।
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