1-॰
धक्का देकर चल पड़े
ना ठहरे उनके पैर,
लालकिले पर घूमने
निकले हों करने सैर,
मुहब्बत नहीं दिल में तनिक
नफरत का पैगाम सजा,
आत्मा बोली जिस्म से
रोक करे मत देर।
2-
दहेज समझ अर्थी का
सामान उठा लाया,
दुल्हन के सुर्ख लिबास में
शमशान उठा लाया,
क्या मालूम था ये खन्जर
सीने के पार होगा?
जाने किस घड़ी मंडप की
आग उठा लाया?
3-
तुम कौन और तुमसे
वफ़ा की उम्मीद कैसी,
हकीकत से गवाही की
मुकरने लगे हैं लोग,
रुकी हो कलम तो
इंसाफ का नज़्ज़ारा कैसा,
आपस में ही नामे-मिल्लत
झगड़ने लगे हैं लोग।
4-
अपने घर की दीवारों का
चेहरा तन्हा लगता है,
मतना पूछो दर्द की बातें
जख्म बेगाना लगता है,
उठते हैं किरदार जमीं से
आता है यम का पैगाम,
अपने खूं के रिश्तों का भी
खूं से बचना लगता है।
5-
सब अपनी-अपनी अर्थी का
सामान जुटाने में व्यस्त थे,
जानते थे मौत का दर्द
मौत के इतने अभ्यस्त थे,
एक हम हैं कि जिन्दगी का
सामान जुटाने में लगे रहे,
पलटकर देखा तो सूरज
हमारे भी अस्त हैं।
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बहुत अच्छा लिखा है मुकेशजी, दूसरा मुखड़ा अति गंभीर बन पड़ा है