माँ भारती रै भाल री रूखाल कुण करै,
घर रा ही जद खाडा खोदै बानै कुण भरै।
उतराधी दिखणनादी देखो, अगुणी आथूणी मै,
लाय लागरी लपटा उठे, देखो च्यारु कूणी मै,
धुंवे का सा गोट उठे है, आभै मैं अंधारी है,
बुद्ध री अहिंसा पर देखो, आतंकी अब भारी है,
बोस पटेला धरती छोड़ी, अब दकाल कुण करै,
माँ भारती रै भाल री रूखाल कुण करै।।
उतराधी तो बाड़ दाबली, चीनीड़ा चररावे है,
आतंक्या रै बम गोला सूं घाटी भी थररावे है,
करड़ी कूंत करै क्यूँ कोनी, दिल्ली क्यूँ सरमावे है
मररया मिनख मोकला नितरा, घाटी मै सन्नाटो है,
भारत की संप्रभुता पर ओ पड्यों जोरको चांटों है
लुटती पिटती मरती माँ संभाल कुण करै,
माँ भारती रै भाल री रूखाल कुण करै।।
लढ़ा पटको होण लागरयो, दिल्ली कै दरबार मैं,
खाणपीण मस्त है सगला, लाय लगै घर-बार मैं,
रेल खेल अर कोयला, सगला मैं बंटाधार है,
लूली लंगड़ी आँधी बैरी, भारत री सरकार है,
लूट-लूट के खावै देखो, जीणे मैं धिरकार है,
बाड़ खेत नै खाण लगी, देखभाल कुण करै,
माँ भारती रै भाल री रूखाल कुण करै।।
नक्सलवादी गुंडा नाचै, हाथा मैं हथियार लिया,
धणी-धोरी कोई कोनी जाणे बचसी देश कियाँ,
घणी-अनीति राजनीति री, जनता सैसी बोलो कियाँ,
पाँच रिपिया मैं रोटी मिलज्या, मरसी भूखा-पेट कियाँ
नोट बांटके बोट बांटोरै, देश नै बाँटे जचे जिया,
लुटती-पिटती जनता दीसे, लोकतन्त्र की लास लियाँ,
सगले मुंडा तालो लाग्यो, सवाल कुण करै,
माँ भारती रै भाल री रूखाल कुण करै।।
छंदा रा बाजीगर देखो, नुआ नुआ छंद रचे,
हंसी ठठा करता रैवै, नितरा नुआ फंद रचे,
मंच मजाका होती रैवै, चुटकुला अ चंद रचे,
चाँदी रो जूतो है सिर पर, भाड़े रा अ बंद रचे,
कविता धर्म निभावै कोनी, थोथा गाल बजावे है,
जेब खरचियो लेबाआला, भाट बण्या बीरदावे है,
कवि चंद सरीखा कविया री अब ढ़ाल कुण मरै,
माँ भारती रै भाल री रूखाल कुण करै,
घर रा ही जद खाडा खोदै बानै कुण भरै।।
मनोज चारण
मो. 9414582964
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Sandeep Singh
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