1-॰
परमाणु पर एकमत
जीवन का ख्याल कहाँ?
जा रहीं कुछ जिन्दगियां
करने जीवन निर्वाह कहाँ?
कम्प्यूटरों की आत्मा
मिशाइल में कैद है,
मानव की खोपड़ी का
जीन मिलता है कहाँ?
2-
यदि कोई परमाणु ऐसा
ईज़ाद हो स्वदेश में,
नारी जैसा दिल लगे
आत्मा साधु के भेष में,
जिसके आँचल से नगण्य
फुटबॉल बालक खेल लें,
नाम संक्रमित एड्स का
ना रहे कभी परिवेश में।
3-
शगूफे तैयार थे
मुस्कुराने के लिए,
कुछ भंवरे आ गए
गुनगुनाने के लिए,
क्या मालूम अंजुमन में
धमाके भी हों,
कफ़न भी ले चलो
मुर्द सजाने के लिए।
4-
ऐ बुढापे चल इधर
उधर नहीं मंजिल तेरी,
खरीदकर जवानी क्या करूँ
जब सजी अर्थी मेरी,
गर्दिशों की याद कर
सोचता है क्या भला,
मांस के लोथड़े पे
नीयत बदल गई तेरी।
5-
बिखरी जुल्फ कि
मइयत नजर आई,
उम्र-ए-दराज को
मेहमां नजर आई,
किसे मालूम
मेहमां-नवाजी कब तलक,
गर ख़िज़ाब
मूछों पे नजर आई।
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