है नयी उलझन यही
तुझे क्या बताऊ क्या नहीं
मेरे लिए जो है सही
शायद तेरे लिए हो नही
तुझे दिल से मानता हूँ
इतना कहाँ जनता हूँ
इन नैनो में क्या चल रहा
तेरे मन में क्या पल रहा
औरो से पूछने में रुसवाई है
आखिर दिल मैंने लगाई है
उसी दिन तुझे बता देता
दिल का भ्रम मिटा लेता
पहली बार देखा जब से
दो माह बीत गए तब से
अब जाके ये समझा हूँ
प्रीत सुलझी चीज नहीं है
सुलझाना हरगिज नहीं है
ये कुदरत की जजा है
उलझनों में ही मजा है
लो आज कह दी रही सही
तू नहीं तो कुछ नहीं
अब लगेगी एक अगन
दोनों तरफ नयी उलझन!!!