ये सोच-सोच घबराता हूँ……..
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पिता नही मेरी ताकत है, छत्र-छाया में उनकी रहता हूँमहफूज उनके संरक्षण में, निडर हो बेफिक्री से जीता हूँछोड़ जायेंगे एक दिन अकेला,ख्याल से सहम जाता हूँटल न सकेगी वक़्त कि अनहोनी, ये सोच-सोच घबराता हूँ……..!!
करुणा सागर, अथाह प्रेम, साश्वत देवी देख पाता हूँसर्वस्व लुटां दू चरणो में, फिर भी न क़र्ज़ चुका पाता हूँआँचल का साया बना रहे माँ, आजीवन छाया चाहता हूँकिस क्षण रह जाऊंगा बिलखता,ये सोच-सोच घबराता हूँ……!!
प्राणप्रिय, जीवन संगनी, सुख-दुःख की सहभागिनीप्रेरणा की स्रोत बनकर, मेरे जीवन की पतवार बनीतुझ संग मिलकर जीवन रथ को पार लगाता जाता हूँटूट जायेगा बंधन जन्मो का, ये सोच-सोच घबराता हूँ……..!!
नव-पल्लव, मेरे जिगर के टुकड़े, जिन्हे देख मुस्काता हूँकिलकारियों से जिनकी, घर-आँगन को चहकता पाता हूँउन खातिर बनकर माली,खून-पसीने से सींचता जाता हूँबिन माली के क्या होगा उनका, ये सोच-सोच घबराता हूँ……..!!
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__________डी. के. निवातिया ________
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डी. के निवातिया जी,
पिता की छाव सदा सब के जीवन में बनी रहे, बहुत भावुक कविता है
अनमोल वचनो का हृदयतल से आभार आपका ………….RINKI JI.
परिवार के प्रति आपके प्रेम को दर्शाती आपकी शानदार रचना गुरुजी…..💐💐
अनमोल वचनो का हृदयतल से आभार आपका ………….KRISHNA SAINI
निशब्द हूँ….ऐसे भावों के लिए…. आपको नमन….कलम को परनाम…..
अनमोल वचनो का हृदयतल से आभार आपका ………….C.M. SHARMA JI.
आपके इस रचना के लिए हमारे पास कोई शब्द नहीं है सर। 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
अनमोल वचनो का हृदयतल से आभार आपका ………….BHAWANA JI.
yahi to maya moh hai Nivatiya Ji. Bahut khoob.
अनमोल वचनो का हृदयतल से आभार आपका ………….SHISHIR JI.