न गीत सुनाओ सुर में
न संगीत बजाओ धुन में
गहरा दिल के अंदर आग जल रही है
न फूल सजाओ बन में
न मंदिर बनाओ मन में
अंदर ही अंदर कोई तूफान चल रही है
न मरहम लगाओ तन में
न मन उड़ाओ गगन में
मस्तिष्क के अंदर कोई क्रोध उबल रही है
हर पल ये कैसा हलचल
क्यों हो गया मै दुर्बल
अब मेरे जिंदगी का सूरज ढल रही है
हरि पौडेल
१६-०८-२०१३