जब भूलना चाहू तो यह क्यों कर याद दिलाते है
क्यों झूठी सपने फिर घूम घूम कर आते है
भीड़ थी तमाशाइयों की जब बेहोस पड़ा था रास्ते पर
बेचारा कहकर चलते हुए झूठी दया दिखाते है
हालत जब थी अच्छी अपनी चारो ओर सम्बन्धी थे
मेरी हालत ने बदली करवट तो सभी आँख चुराते है
जिंदगीभर कोई नहीं आया मेरी जख्म सहलानेको
छोड़ चला दुनियाँ तो ये मगरमच्छ के आँशु बहाते है
हरि पौडेल
नेदरल्याण्ड
१३-०४-२०१४
वाह हरि जी,
जीवन का असली मूल्य आपने समझा और इसे कविता के माध्यम से सभी के लिए प्रसार किया। वाकई बेहतरीन रचना।
अरुण अग्रवाल जी नमस्कार,
प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. हिंदी मेरी भाषा नहीं है पर हिंदी से बहुत प्यार है. अपनी हिंदी सुधारने की प्रयास कर रहा हूँ और कोई मददतगार की तलाश में हूँ. आपके प्रतिक्रिया से मुझे प्रेरणा मिली है. आशा है आगे लिखने की शैली में कोई गलती दिखने पर सुधारने के लिए भी सल्लाह देंगे. धन्यवाद!!
हरि पौडेल