(खुद को खुद का मीत बना ले)***
बहुत हुआ व्यंग यार अब एक सुन्दर सा गीत बना ले
न चुरा मित्र धुन इस तरह कभी अपना संगीत बना ले
तोड़ दे सब सांकल आज जिनमे है कैद तू जन्मों से
छोड़ दे सब रस्मों रिवाज़ आज प्रेम की रीत बना ले
नफरत की आंधी को हवा न दे इस कदर तू कटाक्ष से
खुलकर जी और जीने दे सभी से आज प्रीत बना ले
जमीर को कंगाल न होने दे गर है आदमियत ज़रा
ओरों की छोड़ अपनी बात कर हार को जीत बना ले
हिचकिचा कर बोल पर सच बोल, मन में न रख बात को तू
पहचान ज़रा ‘रजत’ खुद को, खुद को खुद का मीत बना ले
___________________गुरचरन मेहता ‘रजत’___________