Homeनवीन कुमार 'आर्यावर्ती'विश्वाश विश्वाश Navin Kumar "Aryawarti" नवीन कुमार 'आर्यावर्ती' 25/08/2014 No Comments विश्वाश जब तूतता है बिसरता है तब सूख जाते है आसू आखो की तूत जाते है हौसला और मर जाता है आदमी उसका ह्रदय उसके रास्ते छूत जा्ती है मन्जिले है सवाल क्या है आधार हर्श का कापता है ह्रदय विसाद से बार-बार हर बार सौ बार जीने तक – नवीन कुमार ” Tweet Pin It Related Posts इसी जनम (गजल) परिनाम लाल कलम About The Author Navin Kumar "Aryawarti" Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.