“परिणाम”
अतुल अभिराम अब्ज,
कैसे करूँ अकथ गुणगान-
मैं अलि तेरा अनुचर,
उभय प्रणय रहे अविराम-
प्रसाद विचरण संद्ध्य में,
प्रणय बास फैलाती हुई –
कई बार किया पथ विचलित,
तंगपट में व्याकुल प्राण-
हर सहर सुध आती है,
अरी सुमन तेरी बास से-
ढलता है सीकर मेरे,
कपोलों पे अविराम-
तेरी स्वक्ष जैसे सागर,
जैसे मद्य का मद हो छाया-
दमकती काया और भाव में डूबा,
“नवीन” क्या तेरा परिणाम-
रचनाकार – नवीन कुमार ” आर्यावर्ती